India Literacy Project
चुनौती और संगठन
India Literacy Project (ILP) की शुरुआत 1990 में संयुक्त राज्य अमेरिका में स्वयंसेवकों के एक समूह ने की थी, ताकि भारत की साक्षरता दर में सुधार किया जा सके. यह जन समुदायों को मज़बूत बनाकर, शिक्षा व्यवस्था की कमियों पर ध्यान देकर और शिक्षा व्यवस्था में बदलाव करके भारत में 100 फ़ीसदी साक्षरता दर लाने में मदद कर रहा है. आईएलपी मुख्य तौर पर भारत के ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ बहुत कम साक्षरता दर वाले दूर-दराज के इलाकों में भी में साक्षरता लाने में मदद करता है.
ग्रुप ने यह बात समझी कि साक्षरता बेहतर करने में एक सबसे बड़ी समस्या यह है कि बच्चे अलग-अलग तरीकों से सीखते हैं, लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली मुख्य रूप से पारंपरिक ढांचे पर आधारित है, जिसमें शिक्षक ब्लैकबोर्ड की मदद से पढ़ाता है. इसलिए, आईएलपी ने बहु-आयामी शिक्षण स्थान (एमडीएलएस)(MDLS) पहल की शुरुआत की, जो कि बच्चों को बेहतर जानने, प्रयोग करने, कई तरीकों से खोज करने और सीखने की सुविधा देती है. इसका मकसद सिर्फ़ उनकी पढ़ाई में मदद करना ही नहीं है, बल्कि उनकी इस तरह से मदद करना भी है, ताकि वे खुद को जान सकें और अपनी रुचियों और अपनी ताकत को पहचान सकें.
एमडीएलएस सीडी, ऑडियो, वीडियो, और इंटरनेट ऐक्सेस की सुविधा देता है. आईएलपी ने एक कम लागत वाली विज्ञान किट भी बनाई है जिसकी मदद से बच्चे प्रयोग कर सकते हैं और उन प्रयोगों के सिद्धांत समझ सकते हैं. लेकिन, सामाजिक विज्ञान के लिए कोई इंटरैक्टिव कॉन्टेंट उपलब्ध नहीं था. भारत में इस विषय में इतिहास, नागरिक शास्त्र, और भूगोल शामिल हैं. आईएलपी ने ऐसा कॉन्टेंट बनाने के लिए तैयारी की.
उन्होंने यह कैसे किया
आईएलपी ने Google Earth की मदद से एमडीएलएस के सामाजिक विज्ञान वाले हिस्से के लिए इंटरैक्टिव कॉन्टेंट बनाना. इंडियन लिटरेसी प्रोजेक्ट की ऑपरेशन कोऑर्डिनेटर पद्मजा सत्यमूर्ति कहती हैं कि “हमने महसूस किया कि बच्चों को सिखाने के लिए, Google के 'स्ट्रीट व्यू', Google My Maps, और Google Earth से बहुत मदद मिल सकती है और इसके अलावा किसी और तरीके से इसे कर पाना मुमकिन नहीं होगा”. उदाहरण के लिए, “गांवों में रहने वाले कई बच्चे कभी बाहर नहीं निकले, और शायद वे कभी भी ताजमहल नहीं देख पाएंगे. आम तौर पर वे सिर्फ़ किताबों में उसकी छोटी सी तस्वीर ही देख पाते हैं. Google टूल की मदद से, बच्चों को लगेगा कि वे असल में उसी जगह पर मौजूद हैं.”
आईएलपी ने भी Google Earth का इस्तेमाल इसलिए किया, क्योंकि इसमें Voyager सुविधा है. इसकी मदद से वैज्ञानिक, कलाकार, शिक्षक,और दूसरे लोग मैप, 3D व्यू और इंटरैक्टिव सामग्री का इस्तेमाल करके दिलचस्प कहानियां बना सकते हैं. सत्यमूर्ति कहती हैं कि “Voyager सुविधा, इतिहास और भूगोल में जान डाल देती है”. “यह कहानी सुनाने से ज़्यादा अच्छा अनुभव है. बच्चों को अपनी संस्कृति और इतिहास की बेहतर जानकारी मिलती है, क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि वे इस कहानी का हिस्सा थे. साथ ही, इसके लिए उन्हें अपनी कक्षा से बाहर भी नहीं जाना पड़ता.”
आईएलपी में स्थानीय शिक्षकों और अपने प्रोग्राम मैनेजर की मदद से इंटरैक्टिव कहानियां बनाई जाती हैं. इन्हें चार भारतीय राज्यों के विषयों के अनुसार मैप किया जाता है और इनके ज़रिए पांचवीं से दसवीं कक्षा के छात्रों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाया जाता है. कहानियों को दिखाने के लिए Google पत्रक का इस्तेमाल किया गया, जिसमें सभी टेक्स्ट और मैप और दूसरी इंटरैक्टिव कॉन्टेंट के लिंक थे. कहानियों में ऐतिहासिक जगहों, साम्राज्यों, और नदियों पर खास ध्यान दिया गया जो कि स्कूल के विषयों का अहम हिस्सा हैं.
असर
आईएलपी की योजना है कि 50,000 स्कूलों में 10 लाख छात्र Voyager की कहानियों का इस्तेमाल करें. यह इस लक्ष्य को जल्द ही हासिल करना चाहता है. 2019 के अंत तक, इसका लक्ष्य 2,50,000 से 5,00,000 छात्रों की बीच पहुंचने का है.
यह कार्यक्रम पहले से ही अपनी पहचान बना रहा है. सत्यमूर्ति कहती हैं कि “शिक्षक कहते हैं कि जिन कक्षाओं में Google Earth का इस्तेमाल किया जाता है उनमें विद्यार्थियों की संख्या सबसे ज़्यादा होती है”. "शिक्षक इस कक्षा को बहुत आसानी से सिखा पाते हैं, क्योंकि इस कक्षा के विद्यार्थियों में सीखने की इच्छा सबसे ज़्यादा होती है. उनके सीखने के अनुभव को पूरी तरह से बदला जा रहा है. वे इतिहास और भूगोल को अपनी आंखों से देखते हैं. इसके लिए तारीखें याद करने या नक्शे बनाने की ज़रूरत खत्म हो गई है.”
वे Google Earth Outreach के साथ आईएलपी को काम करने के लिए धन्यवाद देते हुए कहती हैं कि “आईएलपी ने नए टूल और मीडिया सामग्री से इतिहास और भूगोल को जानना, उसे एक नया जीवन देने जैसा है यह युवाओं की कल्पना को बेहतरीन तरीके से पेश करता है."
उनका मानना है कि इससे मिलने वाला फ़ायदा सिर्फ़ कक्षा तक ही सीमित नहीं रहता. वे कहती है कि "यह प्रोजेक्ट छात्रों की काबिलियत निखारता है." “यह सिर्फ़ किताब से पढ़कर सीखने तक ही सीमित नहीं है. मेरा मानना है कि इससे सीखने के लिए ऐसी जिज्ञासा और लगाव पैदा होगा जो कभी खत्म नहीं होगा."