Keystone Foundation

लेखक
टी. बालचंद्र, कीस्टोन फ़ाउंडेशन में सूचना और संचार के लिए प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर
संगठन
Keystone Foundation
इस्तेमाल किए गए टूल
Google Earth Pro, Open Data Kit

चुनौती और संगठन

ज़्यादातर लोग भू−स्थानिक सूचना प्रणाली (GIS) को पानी तक पहुंच की रक्षा करने के साथ जोड़कर नहीं देखेंगे, लेकिन GIS और Google Earth, दक्षिणी भारत के नीलगिरि पहाड़ी क्षेत्रों और उससे आगे रहने वाले स्थानीय लोगों की उस पानी तक स्थायी पहुंच बनाने में मदद कर रहे हैं जिसने पीढ़ियों से उनके समुदायों का अस्तित्व बनाया है.

Keystone Foundation इस कोशिश का बहुत ज़रूरी हिस्सा है. Keystone एक गैरसरकारी संगठन (एनजीओ) है जो पर्यावरण की खराब स्थितियों को सुधारने और नीलगिरि में पानी और जैव विविधता तक पहुंच की सुरक्षा के लिए काम करता है. इसका खास लक्ष्य नीलगिरि में रहने वाले सभी लोगों के जीवन को बेहतर बनाना है.

Keystone को 1994 में तब बनाया गया, जब तीन दोस्त शहद इकट्ठा करने पर सर्वे करने के लिए निकले. उन्होंने अपने बैकपैक के साथ पर्वतों और सड़कों से होते हुए दक्षिणी भारतीय राज्य तमिलनाडु का सर्वे किया. उन्होंने उन परिस्थितियों को देखा जिनमें 11 स्थानीय समुदाय रह रहे थे. उन्होंने साथ मिलकर Keystone की शुरुआत की. साथ ही, यह तय किया कि वे पर्यावरण के विकास का इस्तेमाल करके संरक्षण का एक नया नज़रिया बनाएंगे, ताकि प्राकृतिक पर्यावरण को बचाते हुए लोगों का जीवन बेहतर हो सके.

उन्होंने यह कैसे किया

Keystone पानी तक पहुंच, जैव विविधता, संरक्षण, और भूमि और पानी के इस्तेमाल के लिए मैप का इस्तेमाल करता है. यह सबसे पहले Google Earth की सैटेलाइट इमेज, Android डिवाइस की जीपीएस क्षमताओं, हाथ से चलने वाली जीपीएस यूनिट, और समुदाय के सदस्यों के बनाए हुए मैप का इस्तेमाल करके स्थानीय मैप बनाता है. इसके बाद, यह जल संसाधनों, ज़मीन का इस्तेमाल और मालिकाना हक, जैव विविधता, वन्यजीव की गतिविधि, और लोगों और वन्यजीवों के बीच के इंटरैक्शन की जानकारी साथ-साथ GIS का इस्तेमाल करके मैप पर डेटा डालता है.

Keystone ने सहयोगी एनजीओ, अनुसंधान समूहों, और राज्य सरकारों के साथ Springs Initiative के हिस्से के तौर पर शिक्षण, डेटा, और संसाधन शेयर किए हैं. ये सहयोगी झरनों को बचाकर भारत में पानी की कमी के लिए मिलकर काम करते हैं जो पूरे देश में ग्रामीण और शहरी समुदायों के लिए पीने के पानी के सुरक्षित स्रोत हैं.

पहाड़ी इलाकों में झरने बहुत ज़रूरी हैं जहां स्थानीय समुदायों के लिए वे पानी के इकलौते स्रोत होते हैं. फ़ाउंडेशन और समुदाय के स्वयंसेवकों ने भारत के नीलगिरि इलाके में झरनों को मैप किया और यह इस इलाके में हर झरने के बारे में अपने तरह का पहला एटलस बना रहे हैं.

यह मैप कुन्नूर इलाके के झरनों की सूची दिखाता है

Keystone में सूचना और संचार के लिए प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर टी. बालचंद्र बताते हैं कि झरनों की सुरक्षा करने से पानी की सुरक्षा तय करने और भूमि और जल संसाधनों के प्रबंधन में सुधार करने में मदद मिल सकती है. वे कहते हैं, “भूमि के बदलते इस्तेमाल, पर्यावरण में गिरावट, प्राकृतिक संसाधनों का शोषण, और जलवायु बदलाव की वजह से झरनों की संख्या और उनमें बहने वाले पानी की मात्रा में कमी आ रही है."

Springs Initiative झरनों के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाती है और पूरे भारत में "स्प्रिंगहेड" — झरनों के आस−पास की ईकोसिस्टम — की सुरक्षा करती है.

टी. बालचंद्र, प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर, Keystone Foundation

Keystone ऐसे मैप बनाता है जो ग्रामीण इलाकों के आस-पास के उन झरनों को दिखाता है जो बदलावों के चलते खत्म होने की कगार पर हैं. उदाहरण के लिए, आस−पास के कुओं से बहुत ज़्यादा मात्रा में ज़मीनी पानी को पंप करना झरनों को सुखा सकता है. दूसरे उदाहरण में, Keystone के मैप बताते हैं कि कैसे ऊपरी सीवेज (नालियों का गंदा पानी) की वजह से नीचे के झरने और झीलें खतरे में हैं या खेतों से बहने वाला पानी जमीन के नीचे के उस पानी को लगातार प्रदूषित कर रहा है जो इन झरनों को पानी देते हैं. उनके मैप के आधार पर, समुदाय और सरकार झरनों की सुरक्षा के लिए कदम उठा सकते हैं.

नीलगिरि जिले में दलदल का मैप

असर

Keystone ने पानी की पहुंच को बेहतर बनाने और 4000 परिवारों पर असर डालने वाली पहलों में मदद के लिए मैपिंग तकनीक का इस्तेमाल किया. ये झरनों और झीलों की सुरक्षा करती हैं, लंबे समय की आजीविका को बढ़ावा देती हैं, और स्थानीय लोगों को पारंपरिक भूमि का हक दिलाने में मदद करती हैं.

मैप दूसरे फायदे भी पहुंचाता है. कई समुदायों में, झरनों और कुओं से पानी के नमूनों का जाँच करने से मल के असर का पता चला है. आस-पास की झीलों और स्प्रिंगहेड की मैपिंग से प्रदूषण के स्रोतों का पता चला जिससे समुदायों के स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने में सहायता मिल रही है.

बालचंद्र का कहना है कि बहुत सारी समस्याएं, खास तौर से पानी तक पहुंचने से जुड़ी समस्याएं, मैपिंग की जानकारी के इस्तेमाल से हल की जा सकती हैं. वे कहते हैं, "हमें लगता है कि मैप, GIS, और डेटा हमारी मुक्ति के औजार हैं और हम कोशिश कर रहे हैं कि वे सबके लिए हों." हमें उम्मीद है कि हम पानी तक सबकी पहुंच, स्थानीय समुदायों, पर्यावरण, और अलग-अलग तरह के जीवों की सुरक्षा के लिए मैप का इस्तेमाल करने में कामयाब होंगे. यह भारत के साथ−साथ पूरी दुनिया के लिए बेहतर होगा."