पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया

लेखक
सफ़राज शाहुल हमीद, वरिष्ठ शोध सहयोगी, पब्लिक हेल्थ फ़ांउडेशन ऑफ़ इंडिया
संगठन
पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया
इस्तेमाल किए गए टूल
Google Earth Pro, Google My Maps

चुनौती और संगठन

दिल की बीमारियों और मधुमेह से लेकर मानसिक और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसी गंभीर असंक्रामक बीमारियां, 21वीं सदी की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौतियों में से हैं. यह बात खास तौर पर भारत के लिए सच है, जहां तेज़ी से होने वाले सामाजिक और आर्थिक बदलावों के चलते लोगों को शारीरिक रूप से कमज़ोर कर देने और उनके जीवन को खतरे में डालने वाली स्थिति की आशंका बढ़ जाती है.

जीवन शैली, खान−पान, और इन बीमारियों के बीच लंबे समय से एक संबंध रहा है. बाहरी वातावरण का असर उन पर अनदेखी के रूप में हुआ है. उदाहरण के लिए, क्या हरियाली की कमी से अवसाद होता है? अगर हां, तो क्या ज़्यादा पार्क बनाने से वह कम हो जाएगा? एक ही मोहल्ले में ज़्यादा संख्या में शराब बेचने वाली दुकानों से क्या फ़र्क़ पड़ता है? क्या ज़ोन बनाने के नियमों से शराब की दुकानों की संख्या में कमी आएगी?

पब्लिक हेल्थ फ़ॉउंडेशन ऑफ़ इंडिया (पीएचएफ़आई) के सेंटर फ़ॉर क्रोनिक कंडीशन एंड इंजरीज़ (सीसीसीआई) ने एक खास नज़रिये के साथ इन सवालों का जवाब दिया: उन्होंने गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और लोगों के रहने के इलाकों का संबंध दिखाने के लिए Google Maps और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) का इस्तेमाल किया और उन वजहों को ज़ाहिर किया जिनके बारे में शायद पहले किसी को पता नहीं था.

भारत में ज़्यादातर मौतों के लिए गंभीर स्थितियां जिम्मेदार हैं, और यह दिव्यांगता की सबसे बड़ी वजह है. इसकी वजह से आर्थिक विकास रुक सकता है और ये लाखों परिवारों को गरीबी से निकालने में बहुत बड़ी मुश्किल हैं. गंभीर बीमारियों के भूगोल और स्थानिक प्रभाव की तेज़ी से पहचान की जा रही है. इससे उस काम की मैपिंग पर ज़्यादा ध्यान देना आसान हुआ है, जिसे हम सीसीसीआई में करते हैं.

सफ़राज शाहुल हमीद, वरिष्ठ शोध सहयोगी, पब्लिक हेल्थ फ़ांउडेशन ऑफ़ इंडिया

उन्होंने यह कैसे किया

अपना अध्ययन करने के लिए, सीसीसीआई फ़ील्ड कर्मियों को आस-पास के घर-परिवारों में इंटरव्यू लेने के लिए भेजते हैं और वे उनके चिकित्सा इतिहास और डेमोग्राफ़िक डेटा इकट्ठा करते हैं. फ़ील्ड कर्मी हर घर के देशांतर और अक्षांश को रिकॉर्ड करने के लिए पोर्टेबल जीपीएस टूल का भी इस्तेमाल करते हैं. उसके बाद वे अपनी जीपीएस यूनिट के साथ उनके पड़ोस में जाते हैं और हरी−भरी जगहों, स्वास्थ्य सुविधाओं, भोजन की दुकानों, शराब की दुकानों, परिवहन सुविधाओं, तंबाकू बेचने वाले स्टोर वगैरह के निर्देशांक रिकॉर्ड करते हैं.

Google Earth Pro और Google My Maps का इस्तेमाल खोजी डेटा विश्लेषण और विज़ुअलाइज़ेशन के लिए किया जाता है. स्वास्थ्य परिस्थितियों और भौतिक वातावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन करने के लिए GIS-आधारित तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण के लिए, एक अध्ययन ने लोगों की शारीरिक गतिविधि के स्तर और उनके परिवार की पार्कों से दूरी के बीच के संबंधों का पता लगाया. शोधकर्ताओं ने हरी-भरी जगहों और उनके घरों के बीच की दूरी की गणना की और विश्लेषण किया कि क्या ऐसा हो सकता है कि जो लोग हरियाली वाली जगहों से जितना दूर होंगे, उनकी शारीरिक गतिविधि उतनी ही कम होगी और उनका ब्लड प्रेशर ज़्यादा होगा. उन्होंने यह भी अध्ययन किया कि क्या हरियाली से दूर रहने वाले लोगों में अवसाद से पीड़ित होने की ज़्यादा संभावना होती है.

परिवारों की पार्क से दूरी और उन ही परिवार में किसी व्यक्ति के अवसाद से पीड़ित होने की संभावना को दिखाता मैप

असर

सेंटर फ़ॉर क्रोनिक कंडीशन एंड इंजरीज़ (CCCI) ने भारत के चार राज्यों में 25,000 घरों, आस-पड़ोस की 500 जगहों और ध्यान देने लायक 5,000 से ज़्यादा विषयों की मैपिंग की है जिनमें स्वास्थ्य सुविधाएं, हरी-भरी जगहें, और खाने के आउटलेट शामिल हैं. यह भौतिक वातावरण और हृदय रोग, डिप्रेशन, और मधुमेह जैसी स्थितियों के बीच संबंधों के कई अध्ययनों के लिए उस जानकारी का इस्तेमाल कर रहा है. अभी ये अध्ययन ऐसे जर्नल (पत्रिकाओं) में प्रकाशित होने हैं, जिनमें पीयर रिव्यू (साथ काम करने वाले लोगों की समीक्षा करना) किया जाता है.

गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों की वजहों का पता लगाना सीसीसीआई का शुरुआती काम है, आखिरी नही सीसीसीआई अपने शोध सरकारों और योजना बनाने वाले पेशेवरों के साथ शेयर करता है, ताकि वे शहरों को नया आकार दे सकें और इलाकों के कानूनों का इस्तेमाल करके मौजूदा गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं कम कर सकें और नई समस्याओं को होने से रोक सकें.

हमीद कहते हैं, "रोगों की मैपिंग नया काम नहीं है. 1854 में, लंदन में फैले हैजा का पता लगाने के लिए मैप का इस्तेमाल किया गया था. हम बड़े पैमाने पर परिस्थितियों का विश्लेषण करने के लिए इक्कीसवीं सदी की मैपिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं. नतीजों से शहरी योजनाकारों को ऐसे शहर बनाने में मदद मिलेगी, जिनमें रहने वाले लोग ज़्यादा स्वस्थ होंगे. साथ ही, गंभीर और असंक्रामक बीमारियां कम हो जाएंगी."