जेन गुडॉल संस्था
जेन गुडॉल इंस्टीट्यूट (जेजीआई), अफ़्रीका में 40 साल से भी ज़्यादा समय से विशाल वानरों की रक्षा के लिए काम कर रहा है. इन वानरों के अस्तित्व पर उनके प्राकृतिक निवास की बर्बादी, मांस के लिए अवैध शिकार, तस्करी, और रोगों की वजह से खतरा मंडरा रहा है. पिछली शताब्दी में चिंपैंज़ियों की आबादी करीब 20 लाख थी. वहीं अब इनकी संख्या घटकर सिर्फ़ 3,40,000 रह गई है. जेजीआई ने गॉम्बे नैशनल पार्क और पश्चिमी तंज़ानिया के आस-पास संरक्षण कार्यक्रम केंद्रित किया. जेन गुडॉल ने पहली बार 1960 में चिंपैंज़ियों का अध्ययन यहीं शुरू किया था. संस्थान के काम का दायरा युगांडा, कॉन्गो गणराज्य, और कॉन्गो लोकतांत्रिक गणराज्य तक फैल गया है. इस कार्यक्रम का मकसद आने वाले सालों में चिंपैंज़ियों के पूरे इलाके को शामिल करना है.
चिंपैंज़ियों की आबादी के बारे में ताज़ा जानकारी इकट्ठा करना, संगठन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. इसके साथ ही, दूरदराज के वनों और जंगली इलाकों में जानवरों के लिए होने वाले खतरों की जानकारी जुटाना भी सबसे बड़ी चुनौती है. उदाहरण के लिए, इस तथ्य के बावजूद कि पार्क के बाहर 60 प्रतिशत से बड़े इलाके के जंगल काट दिए गए हैं, संरक्षण करने वालों को यह देखने में मुश्किल हो सकती है कि 700 वर्ग किलोमीटर के ग्रेटर गॉम्बे के इकोसिस्टम में हाल ही में पेड़ काटे गए हैं या नहीं जिसमें गॉम्बे नैशनल पार्क और इसके करीब के गांव शामिल हैं. दूसरी चुनौती यह है कि समुदाय के स्थानीय सदस्यों, सरकारी अधिकारियों, और संभावित दाताओं के साथ उस जानकारी को किस तरह सबसे बेहतर ढंग से शेयर किया जाए, ताकि वे स्थिति की गंभीरता को समझ सकें और संरक्षण की कोशिशों में सहयोग कर सकें.
संगठन ने 2007 में गॉम्बे नैशनल पार्क और जंगली इलाकों में चिंपैंज़ियों के प्रवास के बारे में जानकारी इकट्ठा करने और विज़ुअलाइज़ करने के लिए Google Earth का इस्तेमाल करना शुरू किया. इस इलाके में जेजीआई की संरक्षण कोशिशों की कहानी, 'Google Earth में घुमक्कड़ की कहानी' “Goodall, Gombe and Google” शीर्षक के तहत पेश की गई है.
जेजीआई ने सालों कड़ी मेहनत करके कई तरह की टेक्नोलॉजी अपनाई है, ताकि कर्मचारियों और स्थानीय निवासियों को "जंगल की निगरानी करने वाले" के तौर पर तैयार करके जानवरों, जंगलों के हालात, और समय के साथ होने वाले बदलावों को दस्तावेज़ में दर्ज किया जा सके. जेजीआई ने तंज़ानिया के 52 गांवों के निवासियों को Android स्मार्टफ़ोन पर ओपन डेटा किट (ODK) नाम का ओपन सोर्स टूलकिट इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दी है. यह जेजीआई के मोबाइल डेटा इकट्ठा करने का एक तरीका है. इससे गांव के लोग जंगल में गश्त करते समय डेटा इकट्ठा करते हैं. यह ग्रुप, युगांडा में निजी वन मालिकों के 15 संघों के सदस्यों और सैकड़ों रेंजर्स को भी इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग दे रहा है. जंगल की निगरानी करने वाले सदस्य डिवाइस का इस्तेमाल करके जानवर देखे जाने की घटनाओं, जंगल काटने के मामलों, जाल बिछाने, और दूसरे ऐसे संकेतों के आंकड़े भेजते हैं जिनसे चिंपैंज़ियों और उनकी जैव विविधता पर असर पड़ता है. इसका नतीजा है कि यह संरक्षण के लिए ODK का इस्तेमाल करके सबसे लंबे समय तक चलने वाला डेटा संग्रह कार्यक्रम बन गया है.
जेजीआई कई सालों से Google स्ट्रीट व्यू का इस्तेमाल कर रहा है, ताकि लोग जानवरों और उनके परिवेश को करीब से देखने के लिए जंगल की वर्चुअल "सैर" कर सकें. जेजीआई में संरक्षण विज्ञान के उपाध्यक्ष डॉ. लिलियन पिंटिया कहते हैं कि संगठन, स्ट्रीट व्यू से जंगलों की सुरक्षा के तरीकों को इतने बेहतर तरीके से बता सकता है जिसे दूसरी टेक्नोलॉजी नहीं बता सकती. डॉ. पिंटिया कहते हैं कि "हमारे पास ऊपर से देखने वाले सैटेलाइट और मोबाइल टैबलेट से ज़मीनी हालात की जानकारी देने वाले समुदाय हैं. साथ ही, 'स्ट्रीट व्यू' भी है." “इससे लोगों को हमसे जुड़कर जंगल को करीब से देखने का अनुभव मिलता है. आप कुछ समय बाद, उसी रास्ते पर फिर से यात्रा करके जंगल में हुए बदलाव देख सकते हैं. आप काटे गए पेड़ देख सकते हैं या जंगल के उन इलाकों को देख सकते हैं जहां फिर से जंगलों को नया जीवन दिया जा रहा है.”
डॉ. पिंटिया ने गॉम्बे नैशनल पार्क में Googlers की टीम को 'स्ट्रीट व्यू' ट्रेकर वाले बैकपैक के साथ आने का न्यौता दिया, ताकि Google Maps का कोई भी उपयोगकर्ता जेन गुडॉल के नक्शेकदम पर चल सके.
जेजीआई अब 'स्ट्रीट व्यू' के कैमरा लोन प्रोग्राम से मिले कैमरे का इस्तेमाल करता है. इससे शुरुआत में कैप्चर की गई जगहों को फिर से दिखाया जा सकता है . गांव के लोग 'स्ट्रीट व्यू' में अपने गांव की तस्वीरें डालने के लिए ज़रूरी डिवाइस इस्तेमाल कर सकते हैं. ये डिवाइस भारी ट्रेकर बैकपैक से काफ़ी हल्के हैं -- साइकल चलाते समय उन्हें अपने हेलमेट पर सिर्फ़ 360º कैमरा लगाना होता है.
“चिंपैंज़ियों की निगरानी के लिए, जंगल के हरे-भले इलाकों के दस्तावेज़ तैयार करने का काम काशिंदी करता है. (फ़ोटो क्रेडिट: Inside Africa, CNN International)
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डॉ. पिंटिया कहते हैं, "आपके पास 'स्ट्रीट व्यू' की जितनी ज़्यादा तस्वीरों का संग्रह होगा, आपके पास बदलाव को देखने और समझने के साथ ही व्यक्तिगत दृष्टिकोण मुहैया करवाने के उतने की ज़्यादा अवसर होंगे". “मेरे लिए Google अर्थ वीआर बहुत फ़ायदेमंद टूल है. इसके ज़रिए मैं जंगल में 'टहलते' समय ऐसे व्यक्ति को अपने साथ ले जाकर प्राकृतिक सुंदरता दिखा सकता हूं जो इस बारे में सही फ़ैसला ले सके कि अगर जंगलों का संरक्षण नहीं किया गया, तो यह सब नष्ट हो जाएगा."
संगठन, दूसरे खास मकसदों के लिए दूसरे Google मैपिंग टूल इस्तेमाल करता है: ताकि जंगलों में रहने वाले समुदाय, भूमि को नुकसान पहुंचाए बिना उसका बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर सकें, अनुमान लगा सकें कि आने वाले समय में चिंपैंज़ी किन इलाकों में रहेंगे, और बच्चों में संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके. उदाहरण के लिए, जेजीआई तंज़ानिया के जंगलों को मैप करने के लिए Google Earth Engine का इस्तेमाल करता है. इससे बायोमास का पता लगाया जाता है. इसका इस्तेमाल वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन को कम करने के लिए किया जा सकता है. Google Earth Engine, क्लाउड में मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म का इस्तेमाल करता है. इससे जेजीआई, प्रजातियों के मॉडल बना पाता है. साथ ही, बायोमास और चिंपैंज़ी संरक्षण के लिए सबसे अहम इलाकों का पता लगा पाता है. उदाहरण के लिए, संगठन ने चिंपैंज़ियों के ज्ञात आवासों और वैरिएबल का इस्तेमाल करके, उनके लिए सबसे सही प्राकृतिक इलाकों जैसे कि ऊंची जगहों, सदाबहार जंगलों, और खड़ी ढलानों का अनुमान लगाया. डेटा एक ऐसे मॉडल में डाला जाता है जो चिंपैंज़ियों के प्राकृतिक निवास के इलाकों को मैप करता है. Roots & Shoots के यूथ और लीडरशिप प्रोग्राम में भी अपने समुदायों को मैप करने के लिए Google My Maps का इस्तेमाल किया जा रहा है, ताकि वे सारी दुनिया में बेहतर ढंग से संरक्षण कार्यक्रम चला सकें.
डॉ. पिंटिया कहते हैं, “मोबाइल मैपिंग टेक्नोलॉजी ने स्थानीय समुदायों को भूमि के इस्तेमाल की अहम योजना बनाने में डेटा का योगदान करने और इस्तेमाल करने की काबिलियत दी है.” “आज, ग्रामीण जो चाहें बता सकते हैं. उनके पास जानकारी शेयर करने की सुविधाएं मौजूद हैं. इससे सामाजिक बदलाव हुए हैं और सभी को अपनी बात रखने का मौका मिला है. इसकी मदद से अब तंज़ानिया के लोग जंगलों की बेहतर तरीके से देखभाल कर पा रहे हैं."
स्थानीय समुदायों वाले फ़ॉरेस्ट डेटा को हासिल करने, विज़ुअलाइज़ करने, और शेयर करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले Google टूल के मुताबिक संरक्षण के इलाकों में बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि गांव के फ़ॉरेस्ट रिज़र्व, समुदाय के मालिकाना हक में आते हैं. यह महत्वपूर्ण है कि गॉम्बे नैशनल पार्क के बाहर मौजूद जंगल का 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा 1972 और 1999 के बीच नष्ट हो गया था. जेजीआई ने यूएसएआईडी से मिले अनुदान, Google और दूसरे मैपिंग टूल, और सैटेलाइट इमेज का इस्तेमाल करके 52 गांवों में भूमि के इस्तेमाल की योजना बनाई है. इससे ग्रामीणों को अचानक आने वाली बाढ़, ज़मीन की कटान, और चिंपैंज़ियों को नियंत्रित करने के लिए वन भूमि की अहमियत को समझने में मदद मिलती है. साथ ही, ग्रामीण यह भी समझ पाए हैं कि ज़मीन का सही तरह से इस्तेमाल करके वे और जानवर एक साथ रह सकते हैं. नेता और प्रशासनिक अधिकारी 3D सैटेलाइट से मिली तस्वीरों के संग्रह में आसानी से देख सकते हैं कि जंगलों का दायरा कितना कम हो गया है. साथ ही, पेड़ काटने और भूस्खलन से घर और खेत नष्ट हो गए हैं.
गांवों और संरक्षण करने वालों के बीच सहयोग और मैपिंग टेक्नोलॉजी की मदद से जंगलों की दशा में भी सुधार हुआ है. 2005 से 2014 तक Landsat और DigitalGlobe सैटेलाइट की तस्वीरों के संग्रह की तुलना करने से मिले शुरुआती डेटा से पता चला है कि 1972 और 2005 के बीच नष्ट हुए जंगलों के 94 प्रतिशत हिस्से में प्राकृतिक सुधार के संकेत मिले हैं.
“किगलई फ़ॉरेस्ट रिज़र्व में मई 2005 से जून 2014 के बीच प्राकृतिक घास मैदान का फिर से हरा-भरा होना दिखाई देता है.
”Google Earth हमें प्राकृतिक परिवेश और ज़मीन के इस्तेमाल के बारे में हमारी भौगोलिक जानकारी को ज़्यादा फ़ायदेमंद बनाने में मदद करता है. सही फ़ैसला लेने के लिए आपको अपने दिमाग के बजाय दिल की आवाज़ सुननी होगी. अगर मैं लोगों को Google Earth में कुछ जानकारी दिखाऊं, तो उन्हें कोई अनजान चीज़ नहीं, बल्कि कोई निजी चीज़ दिखाई देगी: उनके खेत, उनका पड़ोस. उन्हें इसे देखकर खुशी होती है और वे इस टूल की अहमियत समझते हैं. यह विज्ञान के रूखे डेटा को एक ऐसी आम भाषा में अनुवाद करने जैसा है जिसे लोग आसानी से समझ सकते हैं.
”डॉ. लिलियन पिंटिया, उपाध्यक्ष संरक्षण विज्ञान, Jane Goodall Institute