यूनाइटेड स्टेट्स होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम: डारफुर में संकट

लेखक
एंड्रयू हॉलिंगर, निदेशक, संचार
संगठन
यूनाइटेड स्टेट्स होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम
इस्तेमाल किए गए टूल
Google Earth

यूनाइटेड स्टेट्स होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम एक ऐसा स्मारक है जिसे होलोकॉस्ट पीड़ितों के सम्मान में बनाया गया है. यह आज के हालत में, जातीय हिंसा और मानवता के ख़िलाफ़ होने वाले दूसरे अपराधों के खतरों का सामना करने के लक्ष्य को पूरा करने में मददगार है.

Google Earth को जब पहली बार जून 2005 में पेश किया गया, तब म्यूज़ियम की जातीय हिंसा रोकथाम अकादमी किसी ऐसे तरीके की तलाश में थी जिससे विदेश नीति के जानकार जातीय हिंसा और सामूहिक अत्याचार के बढ़ते खतरों की जानकारी को, बेहतर तरीके से लोगों तक पहुंचा सकें. म्यूज़ियम के अधिकारी इस बात को मानते हैं कि Google Earth बेहतर तरीके से और समय पर सही जानकारी देता है. साथ ही, यह जातीय हिंसा और मानवता के ख़िलाफ़ होने वाले दूसरे अपराधों के बारे में लोगों को जागरूक और शिक्षित करने का एक बेहतर ज़रिया भी है.

डारफुर में संकट, यूनाइटेड स्टेट्स होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम का प्रोजेक्ट है जिसमें जातीय हिंसा की रोकथाम को दिखाने की कोशिश की गई है. यह Google Earth में डेटा और मल्टीमीडिया की परत को उपग्रह की तस्वीरों के साथ दिखाती है. यह डारफुर की जातीय हिंसा के बारे में बताने के लिए, म्यूज़ियम और Google की बेजोड़ कोशिश है. यह साझेदारी, विज़ुअल तरीके से दुनिया भर में जातीय हिंसा के खतरों की ओर ध्यान खींचती है और आगे भी ऐसे अत्याचारों के बारे में जानकारी शेयर करने और उन्हें दिखाने का वादा करती है.

संकट के दौरान, पश्चिमी सूडान के डारफुर इलाके में तीन लाख से ज़्यादा लोग मारे गए और 25 लाख से ज़्यादा लोग बेघर हुए. पूरे डारफुर में 1,600 से ज़्यादा गांव पूरी तरह नष्ट हो गए. अब भी वहां के लोगों का जीवन खतरे में है, जबकि हिंसा डारफुर के बाकी गांवों के साथ-साथ शरणार्थी शिविरों और पड़ोसी देश चाड पर भी असर डाल रही है.

आम तौर पर, जातीय हिंसा के अपराधी झूठ और फ़रेब के साये में काम करते हैं. सूडान की सरकार का कहना है कि डारफुर में 9,000 से कम नागरिक "नागरिक युद्ध" में मारे गए हैं. इस तरह के दावों का आसानी से खंडन किया जाता है जब दुनिया भर में कोई भी नागरिक हाई-रिज़ॉल्यूशन वाली सैटेलाइट तस्वीरें और दूसरे ऐसे अहम सबूत देख सकता है जिन्हें पहले सिर्फ़ कुछ ही लोग देख सकते थे. अब, Google Earth का कोई भी उपयोगकर्ता डारफुर को ज़ूम करके देख सकता है और वहां के गांवों में हुई बर्बादी का अंदाज़ा लगा सकता है.

उन्होंने यह कैसे किया

इसकी शुरुआत तब हुई, जब एक अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन -- BrightEarth Project यह पता लगाने के लिए शुरू किया गया कि कैसे Google Earth और इस जैसे दूसरे नई पीढ़ी के मैपिंग टूल, कमज़ोर आबादी का बेहतर बचाव करके दुनिया भर के नागरिकों को ताकतवर बना सकते हैं. भाग लेने वालों में म्यूज़ियम के सदस्यों के साथ-साथ डेकलन बटलर, Nature Magazine के एक वरिष्ठ विज्ञान रिपोर्टर, स्टेफिन ग्रीन्स, एक मशहूर ब्लॉग www.ogleearth.com, और GIS प्रोफ़ेशनल मिकेल मारोन, टिमोथी कारो-ब्रूस, और ब्रायन टिमोनी शामिल थे.

म्यूज़ियम ने संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों, यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ़ स्टेट, और गैर-सरकारी संगठनों के साथ काम किया. इससे म्यूज़ियम को काग़ज़ पर बने नक्शों, टेबल, और लेख जैसे अलग-अलग फ़ॉर्मैट में इधर-उधर बिखरा हुआ ऐसा डेटा मिला जो अब तक सिर्फ़ अलग-अलग जगहों पर मौजूद था.

म्यूज़ियम के कर्मचारियों और Bright Earth स्वयंसेवकों ने एक साल से ज़्यादा समय तक गांव की बर्बादी, शरणार्थी शिविर की जगहों, मानवीय पहुंच, और इस तरह के दूसरे आंकड़ों को एक साथ लाने के लिए काम किया और 2006 की शुरुआत में पहली KML ड्राफ़्ट परत बनाई. यह पहली बार था कि सभी तस्वीरें, डेटा, और मल्टीमीडिया एक ही जगह पर एक साथ पेश किए गए.

हालांकि, हाई-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरों के बिना, Google Earth पर डेटा दिखाना पारंपरिक मैप में सिर्फ़ एक मामूली सुधार होता है. Google ने डारफुर के लिए तस्वीरें लेने की प्राथमिकता पर सहमति दी और 2006 से 2007 के बीच, Google Earth की टीम ने डारफुर की ज़मीन पर पड़ी बड़ी दरारों की हाई-रिज़ॉल्यूशन तस्वीरें अपडेट की.

सिर्फ़ तस्वीरों से हमले वाले गांवों का पता लगाना काफ़ी मुश्किल था.इसी तरह, सिर्फ़ डेटा से उपयोगकर्ता डारफुर में हुए हमलों की बड़ी तस्वीर देख सकते थे, लेकिन हर गांव और आबादी पर इनके असर को नहीं समझते. जब इन दोनों को मिलाया गया, तब ये ज़्यादा असरदार हुए.

उजड़े गांवों और शरणार्थी शिविरों में लगे हज़ारों टेंट की तस्वीरें, बर्बादी और उसके बाद के हालात को दिखाते ऐसे सबूत हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता. म्यूज़ियम के कर्मचारियों और मशहूर अंतरराष्ट्रीय फ़ोटोग्राफ़र की ज़मीनी तस्वीरों और वीडियो, और एमनेस्टी इंटरनेशनल के बयानों को साथ लाकर, इन गांवों की बर्बादी की कहानियों को ज़्यादा असरदार तरीके से लोगों के सामने लाया गया.

म्यूज़ियम में डारफुर संकट दिखाया गया है जो Google Earth की मदद से, जातीय हिंसा से पीड़ित लोगों को मानव अधिकार दिलाने में मदद करने की पहली कोशिश है. अब म्यूज़ियम में परत को अपडेट करने के लिए नए तरीकों पर काम किया जा रहा है, ताकि बचे हुए लोगों, मदद करने वालों, और उन लोगों को बेहतर मदद मिल सके जो डारफुर और दुनिया के किसी भी कोने में जातीय हिंसा के खतरे से घिरे हैं. इससे, पीड़ितों की कहानियों को भी सही तरीके से दुनिया के सामने रखा जा सकेगा.

डारफुर के 1,600 से ज़्यादा क्षतिग्रस्त या तबाह हो चुके गांवों में से एक गांव; 1 लाख से ज़्यादा घर तबाह हुए हैं.

अब कोई यह नहीं कह सकेगा कि वह नहीं जानता. यह टूल पृथ्वी के अनजान कोने में एक रोशनी लाएगा, एक मशाल जो उन पीड़ितों तक पहुंचने में मदद करेगी जिनका अभी तक पता नहीं चलता था. यह डेविड बनाम गोलियथ है और Google Earth ने डेविड को उनके काम के लिए एक मंच दिया है.

जॉन प्रेंडरगैस्ट, International Crisis Group (वॉशिंगटन पोस्ट, 14 अप्रैल, 2007)

असर

जब Google Earth ने म्यूज़ियम की लेयर को अपने सभी उपयोगकर्ताओं के लिए डिफ़ॉल्ट सामग्री के तौर पर दिखाने की सहमति दे दी, तो यह साफ़ हो गया कि इस प्रोजेक्ट का दुनिया भर में बड़ा असर होगा.

डारफुर संकट को 10 अप्रैल, 2007 को दुनिया के सामने पेश किया गया. इसे डच से लेकर अरबी तक दुनिया भर की कई भाषाओं में कवर किया गया. इतना ही नहीं, इसे सिर्फ़ अंग्रेज़ी भाषा में कवर करने वाले 500 से ज़्यादा मीडिया आउटलेट थे. सैकड़ों ब्लॉग ने इस खबर को फैलाया. तमाम शिक्षक, मदद करने वाले लोग, और आंदोलनकारी जातीय हिंसा के बारे में जानकारी देने के लिए Google Earth का इस्तेमाल करते हैं. 10 लाख से ज़्यादा लोगों ने म्यूज़ियम की वेबसाइट से एक और परत डाउनलोड की है और 1 लाख से ज़्यादा लोगों ने साइट के "What Can I Do?" पेज पर आकर पता लगाने की कोशिश की है कि वे कैसे मदद कर सकते हैं.

लॉन्च के दो महीने बाद भी म्यूज़ियम की वेबसाइट पहले के मुकाबले 50 फ़ीसदी ज़्यादा ट्रैफ़िक पा रही है. इस प्रोजेक्ट ने साइट की पहुंच को दुनिया भर में फैलाने का काम किया -- पिछले एक साल में, अमेरिका के बाहर से साइट पर आने वालों की संख्या 25 फ़ीसदी से बढ़कर 46 फ़ीसदी हो गई है. अकेले सूडान से मिलने वाले हिट में 10 गुना से ज़्यादा की बढ़ोतरी देखने को मिली है.

लोगों के इस जुड़ाव से पता चलता है कि दुनिया भर के वेब उपयोगकर्ता टेक्नोलॉजी का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल करना चाहते हैं, ताकि दुनिया भर की ताज़ा खबरें सार्थक और निजी तरीके से उन तक पहुंच सकें. हालांकि, Google Earth उपयोगकर्ता अब भी अपने घरों में नीचे तक ज़ूम करने, रेस्टोरेंट तलाशने, और 3D में शहरों को देखने का आनंद ले सकते हैं. अब, जब वे खुद देखते हैं कि डारफुर में क्या हो रहा है, तो "वर्चुअल ग्लोब" की संभावनाओं को भी बेहतर तरीके से समझ सकते हैं.

Google Earth का इस्तेमाल संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियां फ़ील्ड और मुख्यालयों में खास जानकारी शेयर और व्यवस्थित करने के लिए कर रही हैं. साथ ही, कुछ गैर-सरकारी संगठन भी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि, जातीय हिंसा रोकने के लिए Google Earth का इस्तेमाल अब भी बहुत कम किया जा रहा है.

Google Earth जब नए पार्टनर Web 2.0 के साथ जुड़ा, तो यह समुदायों को एक साथ लाने, अहम जानकारी शेयर करने, और एक अलग अंदाज़ में लोगों को दुनिया दिखाने में सहयोगी बन सका.

सैटेलाइट तस्वीरों के ऐक्सेस को बेहतर बनाने से, Google Earth इस्तेमाल करने वाले लोग जातीय हिंसा के जोखिम वाले इलाकों पर नज़र रखने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. साथ ही, असरदार ढंग से जवाब देने के लिए संगठनों को मज़बूत बना सकते हैं. इससे दूरदराज़ के इलाकों की तस्वीरों के इस्तेमाल को बढ़ाने से संभावित अपराधियों को यह समझाने में मदद मिल सकती है कि नागरिकों के खिलाफ़ उनके कामों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय नज़रअंदाज नहीं करेगा. आखिर में, ये कोशिशें एक भरोसेमंद और सभी के लिए उपलब्ध सार्वजनिक दस्तावेज़ बनाने में योगदान दे सकती हैं जो मानवता के खिलाफ़ अपराधों, जातीय हिंसा, और दूसरे बुरे बर्ताव के बाद जवाबदेही तय करने में मदद कर सकते हैं.

डारफुर में रहने वाले बच्चे